“जौक” की शायरी—
दौलत मिली है इश्क की,अब और क्या मिले,
वह चीज मिल गयी है,जिससे खुदा मिले.
दम आ चुका है लबों पर,आँखों में इंतजार,
बेदर्द जल्द आ ,कि नहीं वक़्त देर का.
तुम आ सको तो शब को और बढ़ा दूँ,
अपने कहे में सुबह का तारा है इन दिनों.
जो छुप न सके वो दाग है इश्क,
कुछ कह न सके वो राजदां है.
थी वस्ल में भी फ़िक्र जुदाई कि,
वो आये तो भी नींद न आयी तमाम रात.