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Late Shri Purushottam Govind Perlekar’s —“Sankalan”74

“जौक” की शायरी—
 
दौलत मिली है इश्क की,अब और क्या मिले,
वह चीज मिल गयी है,जिससे खुदा मिले.
 
दम आ चुका है लबों पर,आँखों में इंतजार,
बेदर्द जल्द आ ,कि नहीं वक़्त देर का.
 
तुम आ सको तो शब को और बढ़ा दूँ, 
अपने कहे में सुबह का तारा है इन दिनों.
 
जो छुप न सके वो दाग है इश्क,
कुछ कह न सके वो राजदां है.
 
थी वस्ल में भी फ़िक्र जुदाई कि,
वो आये तो भी नींद न आयी तमाम रात.

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